400 साल पुरानी परंपरा बड़ा मंगल

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लखनऊ और इसके आसपास के लोगों के अलावा लोग बड़े मंगल के बारे में शायद ही जानते हों। यह लखनऊ का एक लोकल त्योहार है जो जेठ महीने के हर मंगलवार को मनाया जाता है। पहले बड़े मंगल को लखनऊ जिले में सार्वजनिक छुट्टी भी रहती है।

बड़े मंगल की परंपरा तकरीबन 400 साल पुरानी है। बड़ा मंगल लखनऊ के हर हनुमान मंदिर में जोर-शोर से मनाया जाता है। लेकिन सबसे ज्यादा धूमधाम अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर में होती है। अवध के तीसरे नवाब शुजा-उद-दौला की बीवी आलिया ने इस मंदिर में बच्चे की प्राप्ति के लिए प्रार्थना की थी। उसने जल्द ही एक पुत्र को जन्म दिया जिसे प्यार से मंगलू कहा जाने लगा। यही पुत्र बाद में अवध का अगला नवाब आसफ-उद-दौला बना। शुजा-उद-दौला ने न केवल पुराने हनुमान मंदिर का जीर्णोद्धार कराया बल्कि एक नया हनुमान मंदिर भी बनवाया। पुराने मंदिर के शिखर पर आज भी चाँद देखा जा सकता है।

हर लखनऊ वाला बड़े मंगल के दिन हनुमान मंदिर की ओर चल पड़ता है। मंदिरों के कपाट पूरे 24 घंटे – रात 12 से अगली रात 12 बजे तक – खुले रहते हैं। पुराने वक्त में जगह जगह बताशे, गुड़धनिया (गेहूं के भुने हुए दाने जिन पर गुड़ की कोटिंग होती थी), ठंडे पानी और शर्बत के स्टॉल लगाए जाते थे ताकि भक्त लोग जेठ की गर्मी का सामना कर सकें। समय बदला और दिखावा बढ़ा। अब पूड़ी, सब्जी, छोले, राजमा, चावल वगैरह के अनगिनत भंडारे लगते हैं।

लेकिन 400 साल की सामाजिक सौहार्द की पुरानी परंपरा नहीं बदली। पहले बड़े मंगल को ही मलिहाबाद से दशहरी आम तोड़कर पुराने हनुमान मंदिर में बजरंगबली को चढ़ाया जाता है। इसके बाद ही बागों से आम तोड़ना शुरू होता है और हर आम और खास को मलिहाबाद के रसीले आम मिलना शुरू होते हैं।

आज के टकराव के माहौल में लखनऊ की ऐसी परंपरा काश पूरी दुनिया में फैल सकती और हर जगह शांति, भाईचारा और समृद्धि होती।

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