हर शाम के वक्त केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय देश में कोरोनावायरस के ताजा हालात पर मीडिया की ब्रीफिंग करता है। तमाम बातों के साथ-साथ हम जानते हैं कि कितने लोग वायरस से प्रभावित हुए, कितनों ने इसके कारण जान गंवाई और कितने लोगों का टीकाकरण हुआ। टीवी खोलें और आपको लगेगा कि टीकाकरण बहुत धीमे चल रहा है। सुबह अखबार देखें। यही कहानी।
एक ओर बहुत बड़ी आबादी खास तौर पर 18 से 45 साल की उम्र में हर हालत में टीका लगवाना चाहती है, एक और तबका है जो हर हालत में टीके से बचने का हर उपाय करने पर आमादा है। मेरे पड़ोस में रहने वाले पाँच सदस्यों के परिवार से मिलें। एक खास राजनीतिक विचारधारा के अनुयाई इस परिवार के मुखिया और उनकी पत्नी ने फैसला किया कि इस साल की शुरुआत में अपने नेता की टीके पर की गई टिप्पणी की वजह से वे टीका नहीं लगवाएंगे। अब पांचों लोग टीका लगवाने की योग्यता पूरी करते हैं, लेकिन वे इसे नहीं लगवाएंगे क्योंकि टीका लगवाने के बाद उनके दो दूर के रिश्तेदारों की मृत्यु हो गई।
यह धारणा तमाम लोगों के बीच पैठ गई है। राज्य के दक्षिणी भाग में एक मित्र ने बताया कि पिछले महीने दो पड़ोसी कस्बों में हुई सारी मौतों में से कम से कम 60 फीसदी उन लोगों की थीं जिन्होंने टीका लगवाया था। उन्होंने आरोप लगाया कि टीकाकरण गलत, अप्रशिक्षित और अनाड़ी हाथों में है, और कोल्ड चेन शायद ही बनी रहती हैं, जिससे टीका ‘जहरीला’ हो जाता है।
घर के पास उम्र में मुझसे छोटे एक सज्जन ने टीका महज इसलिए नहीं लगवाया कि वह शाम को अपना गला जाम से तर नहीं कर पाएंगे। हाल में टीकाकरण के लिए योग्य हुए उनके तीन भाई अपने बड़े भाई के नक्शे कदम पर चलने के दृढ़ संकल्प हैं। एक और कम उम्र के सज्जन, जो शहर के बाहरी इलाके में स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में तैनात स्वास्थ्य कर्मचारी के मित्र हैं, भी इसी वजह से टीकाकरण से बचते रहे। लेकिन इस कर्मचारी ने उसे (और उसकी पत्नी) को उन दोनों की बेहतरी के लिए जबरदस्ती टीका लगा दिया। एक दिन इस कर्मचारी ने एक गांव वाले का टीके के लिए पंजीकरण किया, लेकिन ग्रामीण अस्पताल से अपनी दिन की शराब पीने के लिए भागने लगा। इस ग्रामीण को करीब-करीब जबरदस्ती टीका लगाना पड़ा।
जिस गांव में यह स्वास्थ्य केंद्र है उसमें यादव और मुसलमान बहुतायत में हैं। दोनों टीका नहीं लगवाएंगे। आखिरकार उनके नेता ने साल की शुरुआत में घोषणा की थी कि वह भाजपा का टीका नहीं लगवाएंगे। मजे की बात है कि पड़ोस के गांवों और पुरवों जिनमें अनुसूचित जाति की अच्छी खासी तादात है को निवासियों ने केंद्र पर टीके के लिए भीड़ लगा दी थी। उनकी नेता ने न केवल टीका लगवाया बल्कि टीका लगवाते हुए अपनी फोटो सोशल मीडिया पर भी डाल दी थी।
धीरे-धीरे इस स्वास्थ्य केंद्र पर जहां शुरुआत में करीब 100 लोगों को टीका लगता था पर भीड़ कम हो गई। मुख्य भंडारण सुविधा पर वापस होने वाले टीकों की संख्या देखकर स्वास्थ्य प्रशासन अब यहां सिर्फ 50 टीके भेज रहा है। इसमें से भी 20-30 खुराक रोज वापस हो रहीं हैं। समस्या तब बढ़ जाती है जब टीका लगवाने के लिए 12-13 लोग आते हैं। चूंकि एक शीशी से 10 लोगों को टीका लगता है, अगर दूसरी शीशी खुलती है तो बाकी खुराक बेकार हो जाती हैं। इसी हालत में स्वास्थ्य केंद्र के कर्मचारियों गांव का दौरा करते हैं और ग्रामीणों से अनुरोध करते हैं कि वे टीका लगवा लें।