नाले को नदी में बदलने की कवायद

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बात आज से 50 साल से भी ज्यादा पुरानी है। तब मैंने लखनऊ के कान्यकुब्ज कॉलेज में 11वीं कक्षा में प्रवेश लिया था। कक्षा में ज्यादातर चेहरे नए थे। उन्हीं चेहरों में से एक था चंद्र भूषण सिन्हा। हमारी नजर में उसकी खासियत यह नहीं थी कि उसके पिता फौज में डॉक्टर थे, बल्कि खासियत यह थी कि वह कभी-कभी अपने पिता की फिएट कार से कॉलेज चला आता था।

एक शाम छावनी में टहलते हुए चंद्र — वह अपना नाम लोगों को इतना ही बताता था — लड़ते हुए कुत्तों के झुंड को अलग करने की कोशिश में एक श्वान का शिकार हो गया। दाँत पिंडली में गहरे लगे थे। मरहम पट्टी के बाद 14 सुइयों का खतरा सर, नहीं पेट, पर मंडरा रहा था। उस वक्त 14 एंटीरैबीज इन्जेक्शन पेट में लगते थे। चंद्र भयानक डरा हुआ था।

किसी ने उसे बता दिया कि अगर वह कुकरैल में नहा लेगा तो सुइयों के दर्द से बच जाएगा। एक दुपहरिया बाद चंद्र और हम दो-तीन दोस्त अपनी-अपनी साइकिलों पर चल पड़े कुकरैल के लिए। तकरीबन 10 किमी की दूरी तय कर हम पहुँचे फैजाबाद रोड पर कुकरैल पुल पर। चंद्र ने कुकरैल में डुबकी मारी और उसके बाद हम सब हा हा हू हू करते अपने-अपने घरों को रवाना हो गए। उस वक्त निशातगंज क्रॉसिंग के बाद कोई बसाहट नहीं थी। कुकरैल का पानी बिल्कुल साफ था। कहते हैं उस समय नदी का पानी पीने के काम भी आता था।

कुछ साल बाद 1970 के दशक के अंत में कुकरैल पुल के एक-डेढ़ किमी आगे फैजाबाद रोड के बाईं ओर इंदिरा नगर कालोनी की शुरुआत होने लगी। और इंदिरा नगर में रहने वालों का दिन भर का करा-धरा बड़े-बड़े पाइपों से होता हुआ सीधे कुकरैल में भेजा जाने लगा। साल 1990 आते-आते कुकरैल नदी नाले में बदल गई। नाले की धारा के दाहिनी ओर नेताओं, अफसरों और इंजीनियरों की मिलीभगत से कब्जा भी तेजी से होने लगा। बाद में यह कब्जा अकबर नगर कहलाया।

समय बीतता गया और कुकरैल पर मानवीय ‘अत्याचार’ बढ़ता गया। आज जिस जगह कुकरैल गोमती में मिलती है किसी समय में यह संगम वहाँ से तकरीबन 2 किमी नीचे हुआ करता था। लेकिन कुकरैल को छोटा कर दिया गया और इस तरह जो जगह खाली हुई वहाँ पर सबसे पहले ताज होटल बना। बाद में वहीं पर एलडीए का ऑफिस और माल बने।

अब ताकतवर जिम्मेदारों को कुकरैल को नाले से नदी में बदलने और नाइट सफारी बनाने का खयाल आया है। अकबर नगर अतीत की चीज हो गई है। ऊपर की धारा में अबरार नगर जैसे मोहल्लों और तमाम अनाम बसाहटों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। पिछले 50 सालों में हर पार्टी की सरकार ने इन्हें बसने दिया और अब अचानक ये मोहल्ले अवैध हो गए। इन बाशिंदों के लिए दूसरी जगह बसना एक आघात से कम तो नहीं ही होगा।

गोमती रिवर फ्रन्ट हमारे सामने है। दूर से कुछ सुंदर तो दिखता है लेकिन पास जाने पर नदी से तीखी दुर्गंध नथुनों को चीर देती है। गोमती उतनी ही गंदी है जितनी सफाई की कोशिशों के पहले थी। यही हश्र शायद कुकरैल का भी होने वाला है। सिर्फ समय बताएगा।

कुकरैल में चलता हुआ काम और (दाएं) बरसात के दिनों में कुकरैल और गोमती का संगम

This Post Has One Comment

  1. Indu prakash Sharma

    बहुत सुंदर 🙏

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