वास्तविक मुद्दों की अनदेखी

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लोक सभा के चुनाव हो गए हैं और सरकार ने काम करना शुरू कर दिया है। बहुतों को मोदी से बहुत शिकायतें हैं और चिंताएं भी। पहली नजर में शिकायतों का पुलिंदा ठीक लगता है। लेकिन यह बहुत सतही है और तमाम वास्तविक मुद्दों की अनदेखी करता है।

बनारस और अयोध्या के मूल निवासी हर चीज चमकती हुई हो इससे बेहद परेशान हैं। बनारस में घाटों के किनारे घर और बाजार सदियों से हैं। ज्यादातर के मालिकों के पास कोई कागज नहीं हैं — शायद तब कागज होते ही नहीं थे। सोचें उस व्यक्ति पर क्या बीतेगी जब उसके दो ढाई सौ साल पुराने घर को अब अवैध बताया जा रहा है। ऐसा व्यक्ति सत्ताधारी पार्टी को कभी वोट नहीं देगा। ताजा क्रम बनारस के अस्सी घाट का है जहाँ 300 से ज्यादा घरों को गिराने के लिए चिह्नित किए गए हैं। अयोध्या में तमाम घर और दुकान गिराए गए और उनके मालिक अब हाशिए पर हैं। मलाई गुजरात और महाराष्ट्र के व्यापारी काट रहे हैं। जब से काशी विश्वनाथ कारीडोर बना है तब से मेरा स्कूली बनारसी दोस्त अरविन्द बाबा के दर्शन करने सिर्फ एक बार गया है क्योंकि अब बहुत समय लगता है। पहले घर से पैदल निकल कर दर्शन कर वह एक घंटे से कम में वापस आ जाता था।

हिंदू अपने ही धर्म के लोगों का सम्मान नहीं करते हैं। हम में से कितने लोग अपने सफाई करने वाले को अपनी क्राकरी तो दूर ठीक-ठाक कप में चाय देते हैं। शायद हममें से ज्यादातर आज भी उनके लिए टूटे फूटे कप अलग रखते हैं। इस तिरस्कार से पीड़ित अगर ऐसे कुछ लोग दूसरे धर्म में चले जाते हैं तो उसके लिए दोषी कौन है? इसी साल सहारनपुर शहर से 6 किमी दूर उनाली गाँव और हरिद्वार जिले के ठसका गाँव में करीब 14 परिवार ईसाई बन गए। क्या कभी किसी मंदिर ने उन्हें वह सहारा दिया जो चर्च ने उनकी फटेहाली में दिया? सोचें।

और जब ईसाइयत की बात आती है तो क्यों ऐसा होता है कि जब बच्चे के एडमिशन की बात आती है तो हमारी पहली प्राथमिकता कान्वेन्ट होते हैं? अगर एक बार सारे हिंदू फैसला कर लें कि हम अपने बच्चों को कान्वेन्ट में नहीं भेजेंगे तो यकीन मानें 90 प्रतिशत कान्वेन्ट बंद हो जाएंगे।

रही बात मुसलमानों की तो 15 प्रतिशत जनसंख्या की कोई सरकार उपेक्षा नहीं कर सकती। ऐसी किसी भी उपेक्षा का नतीजा बेहद खतरनाक हो सकता है जैसे श्रीलंका में सिंहला और तमिल संकट। मुसलमानों को दोयम और सोयम दर्जे का नागरिक मानने की गलती नहीं करनी चाहिए। यही गलती दलितों और आदिवासियों के बारे में भी नहीं करनी चाहिए। इस बार तो मुसलमानों और दलितों ने मिलकर वोटिंग की है और उत्तर प्रदेश का नतीजा सामने है। अगर इसमें आदिवासी भी शामिल हो जाते तो गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखंड भी उत्तर प्रदेश जैसे परिणाम देते।

यह खतरा भी दूर की कौड़ी है एक दिन मुसलमान हिंदुओं से ज्यादा हो जाएंगे। सभी धर्मों की टोटल फर्टिलिटी रेट (टीएफआर) लगातार घटती जा रही है। मुसलमानों की टीएफआर 2.36 प्रतिशत है और हिंदुओं की 1.94 प्रतिशत। स्थिर जनसंख्या के लिए 2.1 प्रतिशत टीएफआर चाहिए होती है। अगले कुछ सालों में मुसलमानों की टीएफआर 2.1 के नीचे चली जाएगी। तब देश की जनसंख्या धीरे-धीरे कम होना शुरू होगी।

दुनिया भर के लोकतंत्र के ट्रेंड को देखते हुए मोदी की जीत अप्रत्याशित है। बीजेपी को अब अगला चुनाव किसी और चेहरे पर लड़ना चाहिए। मोदी और राजनाथ को रिटायर हो जाना चाहिए। राहुल की अगले चुनाव में भी संभावना कम ही रहेगी क्योंकि उन्हें विपक्ष में अपने आपको नेता के रूप में स्थापित करने के लिए लंबी दूरी तय करनी है।

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